मृत्यु एक सर्वाधिक गलत समझी गई घटना है
“मृत्यु एक सर्वाधिक गलत समझी गई घटना है। लोगों ने मृत्यु को संबंध में माना है कि वह जीवन का अंत है। यही पहली और बुनियादी गलतफहमी है।
“मृत्यु कोई अंत नहीं अपितु नये जीवन का प्रारंभ है। हां, वह समाप्ति तो है, पर उसकी जो पहले से ही मृत है। हम जिसे जीवन कहते हैं वह उसका शिखर है, जब कि बहुत कम लोग हैं जो जानते हैं कि जीवन क्या है। वे जीते तो हैं, परंतु ऐसी अज्ञानता में कि वे कभी अपने स्वयं के जीवन से भेंट नहीं करते। और इन लोगों के लिए अपनी स्वयं की मृत्यु को जान पाना असंभव हो जाता है, क्योंकि मृत्यु इस जीवन का चरम अनुभव है, और नये जीवन के अनुभव की शुरुआत। मृत्यु एक जीवन से दूसरे जीवन के बीच का द्वार है; एक जो पीछे छूट गया, दूसरा जो आगे प्रतीक्षा में है।
“मृत्यु के बारे में कुछ भी कुरूप नहीं है; परंतु व्यक्ति ने भयवश मृत्यु जैसे शब्द को भी कुरूप बना दिया है, उसका बहिष्कार कर दिया है। लोग उसके बारे में बात नहीं करते। वह इस शब्द को सुनते तक नहीं।
“इस भय के कारण हैं। यह भय इसलिए उठता है क्योंकि मृत्यु हमेशा दूसरे की होती है। तुम मृत्यु को हमेशा बाहर से ही देखते हो और मृत्यु तुम्हारा भीतरी अनुभव है। यह प्रेम को बस बाहर से देखने जैसा है। तुम प्रेम को वर्षों तक देखते रह सकते हो, परन्तु प्रेम क्या है तुम कभी न जान पाओगे। तुम प्रेम की अभिव्यक्तियों को तो जान पाओगे, परंतु स्वयं प्रेम को नहीं। यही हम मृत्यु के संबंध में जानते हैं। बस सतही अभिव्यक्तियां—श्वास रुक गई, हदय-गति थम गई, वह व्यक्ति जो बात करता था, चलता-फिरता था, अब नहीं है: बस लाश पड़ी रह गई है बजाय एक जीवित शरीर के।
“ये सब बाहरी लक्षण हैं। मृत्यु आत्मा का एक शरीर से दूसरे शरीर में हस्तांतरण है, या फिर कुछ संदर्भों में जब कोई व्यक्ति पूर्ण जाग्रत हो गया है तब एक शरीर से पूरे ब्रह्मांड के शरीर में पहुंच जाना है। यह एक महानतम यात्रा है, पर तुम इसे बाहर से नहीं जान सकते। बाहर से तो केवल लक्षण ही मिलते हैं; और इन लक्षणों ने लोगों को भयभीत कर दिया है।
“जिन लोगों ने भी मृत्यु को भीतर से जाना है उनका मृत्यु से सब भय छूट जाता है।”
Osho, Zarathustra: A God That Can Dance, Talk #16
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मृत्यु जीवन का अंत नहीं है
“मेरे सन्यासी मृत्यु का भी उत्सव मनाते हैं, क्योंकि मेरे लिए मृत्यु जीवन का अंत नहीं है, बल्कि वह तो जीवन का उत्थान है, एक परम शिखर है। वह जीवन का चरम है। यदि तुमने जीवन को ठीक से जिया है, यदि तुमने एक क्षण से दूसरे क्षण को उसकी पूर्णता में जिया है, यदि तुमने जीवन का सारा रस निचोड़ लिया है, तुम्हारी मृत्यु एक परम सुख होगी।
“मृत्यु जो सुख लाती है उसकी तुलना में संभोग का सुख कुछ भी नहीं है, परन्तु वह उसी व्यक्ति को मिलता है जिसे पूर्ण होने की कला आती है। मृत्यु जो सुख लाती है उसकी तुलना में संभोग का सुख फीका है।”
Osho, Come, Come, Yet Again Come, Talk #2
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सभी मृत्यु से भयभीत हैं
“सभी मृत्यु से भयभीत हैं, कारण बस इतना है कि हमने अभी जीवन का स्वाद नहीं लिया है। जो व्यक्ति यह जानता है कि जीवन क्या है,वह कभी मृत्यु से नहीं डरता; वह मृत्यु का स्वागत करता है। जब भी मृत्यु आती है वह मृत्यु को गले लगा लेता है, वह मृत्यु का आलिंगन कर लेता है, वह मृत्यु का अभिवादन करता है, वह मृत्यु को एक अथिति की तरह स्वीकार करता है, जिस व्यक्ति ने यह नहीं जाना कि जीवन क्या है, उसके लिए मृत्यु क्षत्रु है; और जो व्यक्ति जानता है कि जीवन क्या है, उसके लिए मृत्यु जीवन का परम उत्थान है।
“लेकिन सभी मृत्यु से भयभीत हैं; वह भी संक्रामक है। तुम्हारे माता-पिता मृत्यु से डरते हैं, तुम्हारे पड़ोसी मृत्यु से डरते हैं। अपने आस-पास इस सतत भय को देखकर छोटे बच्चे भी प्रभावित हो जाते हैं। सभी मृत्यु से डरते हैं। लोग मृत्यु के बारे में बात भी नहीं करना चाहते।
“दुनिया में केवल दो निषेध रहे हैं: सेक्स और मृत्यु। यह बहुत विचित्र बात है कि क्यों यह दोनों ऐसी निषेधित बातें रहीं हैं जिनके बारे में कोई बात नहीं की जाए, जिन्हें टाल दिया जाए। वे गहराई से जुड़ी हुई हैं। सेक्स जीवन को दर्शाता है क्योंकि सभी कुछ सेक्स से आता है, और मृत्यु अंत को दर्शाती है। और दोनों ही निषेधित रहीं हैं–सेक्स के बारें में बात मत करो और मृत्यु के बारे में भी बात मत करो।”
Osho, Walking in Zen, Sitting in Zen, Talk #12
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यदि मृत्यु न हो तो जीवन में कोई रहस्य न रहेगा
“एक धार्मिक व्यक्ति, एक रहस्यवादी, मृत्यु के रहस्य को खोलने की चेष्टा करता है। मृत्यु के रहस्य को खोलने में, वह अनिवार्य रूप से जान लेता है कि जीवन क्या है, प्रेम क्या है। वे उसके लक्ष्य नहीं है। उसका लक्ष्य तो मृत्यु में प्रवेश पा लेना है, क्योंकि मृत्यु से बढ़कर कुछ भी रहस्यपूर्ण नहीं है। प्रेम में कुछ रहस्यपूर्ण मृत्यु के कारण है, और जीवन में भी कुछ रहस्यपूर्ण मृत्यु के कारण है।
“यदि मृत्यु विलीन हो जाए, तो जीवन में कोई रहस्य नहीं रहेगा। तभी तो किसी मृत वस्तु में कोई रहस्य नहीं होता, एक लाश में कोई रहस्य नहीं होता क्योंकि वह अब और मर नहीं सकती। तुम सोचते हो कि उसमें कोई रहस्य इसलिए नहीं है क्योंकि जीवन चला गया? नहीं, इसमें रहस्य इसलिए नहीं है क्योंकि वह अब मर नहीं सकती। उसमें से मृत्यु विलीन हो गई, और मृत्यु के साथ जीवन भी अपने आप विलीन हो जाता है। जीवन केवल मृत्यु की बहुत सी अभिव्यक्तियों में से एक है।”
Osho, The Dhammapada: The Way of the Buddha, Vol. 4, Talk #7
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तुम्हारे भीतर मरने के लिए कोई नहीं है
“लोग मृत्यु से नहीं डरते, वे अपनी अलग पहचान खोने से डरते हैं, वे अपना अहंकार खोने से डरते हैं। एक बार जब तुम आस्तित्व से अलग महसूस करने लगते हो, तब मृत्यु का भय खड़ा हो जाता है क्योंकि तब मृत्यु खतरनाक लगने लगती है। तब तुम अलग नहीं रह जाते; तुम्हारे अहंकार, तुम्हारे व्यक्तित्व का क्या होगा? और तुमने इस पहचान को इतनी देखभाल, इतनी मेहनत से बनाया है; तुमने अपना पूरा जीवन इसकी साज-सवांर में लगाया है, और मृत्यु आकर इसे नष्ट कर देगी।
“यदि तुम समझते हो, यदि तुम देखते हो, यदि तुम ऐसा महसूस और अनुभव कर सकते हो कि तुम इस आस्तित्व से अलग नहीं हो, कि तुम इसके साथ एक हो, तब मृत्यु का सारा भय विलीन हो जाता है क्योंकि तुम्हारे भीतर कोई नहीं है जिसकी मृत्यु हो। पहली बात तो यही है कि भीतर बिल्कुल कोई है ही नहीं, आस्तित्व तुम्हारे द्वारा जीता है।”
Osho, The Guest, Talk #1
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तुम्हारी मृत्यु बताएगी कि तुम कैसे जिए
“जिस व्यक्ति ने अपना जीवन पूर्णता से जिया है, तीव्रता से, भावपूर्ण रूप से, बिना किसी भय के–बिना किसी ऐसे भय के जो सदियों-सदियों से पंडितों ने तुम्हारे भीतर पैदा कर दिया है–यदि कोई व्यक्ति अपना जीवन बिना किसी भय के, प्रमाणिक रूप से, सहज रूप से जीता है तो मृत्यु उसके भीतर कोई भय उत्पन्न नहीं करेगी, बिल्कुल भी नहीं। वास्तव में तब मृत्यु एक महान विश्रांती के रूप में आएगी। तब मृत्यु जीवन की परम खिलावट की तरह आएगी। वह मृत्यु का भी आनंद ले पाएगा; वह मृत्यु का भी उत्सव मना पाएगा।
“और याद रखना, यह मापदंड है। यदि कोई व्यक्ति अपनी मृत्यु का भी आनंद और उत्सव माना सकता है, तो यह बताता है कि उसने अपना पूरा जीवन ठीक से जिया, इसके अलावा और कोई मापदंड नहीं। तुम्हारी मृत्यु साबित कर देगी कि तुम कैसे जिए।”
Osho, Philosophia Perennis, Vol. 1, Talk #9
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मृत्यु जीवन की पराकाष्ठा है
“जीवन का महानतम रहस्य स्वयं जीवन नहीं है, परंतु मृत्यु है। मृत्यु जीवन की पराकाष्ठा है, जीवन की परम खिलावट। मृत्यु में पूरा जीवन समा जाता है, मृत्यु में तुम घर आ जाते हो। जीवन, मृत्यु की और जाने वाली तीर्थ यात्रा है। बिलकुल आरंभ से ही मृत्यु आ रही होती है। जन्म के क्षण से ही मृत्यु तुम्हारी और चलना शुरू हो गई, और तुमने मृत्यु की और चलना शुरू कर दिया।
“और मानसिक चित्त के साथ जो बड़ी से बड़ी दुर्घटना हुई है वह यह है कि वह मृत्यु के विरुद्ध है। मृत्यु के विरुद्ध होने का अर्थ यह है कि तुम एक महानतम रहस्य को खो दोगे। और मृत्यु के विरुद्ध होने का यह अर्थ भी है कि तुम स्वयं जीवन को खो दोगे–क्योंकि वे दोनों एक-दूसरे के साथ गहरे मेल में हैं; वे दो नहीं हैं। जीवन है ऊपर बढ़ना, मृत्यू है उसकी खिलावट। यात्रा और लक्ष्य अलग नहीं है। यात्रा का अंत लक्ष्य में ही है।”
Osho, The Revolution, Talk #9
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ओशो, मृत्यु के प्रति झेन रवैया क्या है?
“हास्य।” हां, हास्य मृत्यु के प्रति झेन रवैया है और जीवन के प्रति भी, क्योंकि जीवन और मृत्यु अलग नहीं हैं। तुम्हारा जीवन के प्रति जो भी रवैया रहा हो वही मृत्यु के प्रति भी रहा होगा, क्योंकि मृत्यु जीवन की अंतिम खिलावट की तरह आती है। जीवन का आस्तित्व मृत्यु के लिए होता है, जीवन मृत्यु से आता है। बिना मृत्यु के कोई जीवन नहीं होगा। मृत्यु कोई अंत नहीं परन्तु पराकाष्ठा है, एक प्रवाह है। मृत्यु कोई क्षत्रु नहीं, वह मित्र है। वह जीवन को संभव बनाती है।”
Osho, This Very Body the Buddha, Talk #8
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मृत्यु एक महान उद्घोषक है
“प्रत्येक वस्तु अपने मौलिक स्त्रोत पर लौट आती है, उसे अपने मौलिक स्त्रोत पर आना ही होता है। यदि तुम जीवन को समझते हो तो तुम मृत्यु को भी समझ सकते हो। जीवन अपने मौलिक स्त्रोत का विस्मरण है, मृत्यु उसका फिर से स्मरण। जीवन अपने मौलिक स्त्रोत से दूर चले जाना है, मृत्यु अपने घर लौट आना। मृत्यु कुरूप नहीं है, मृत्यु सुंदर है। परन्तु मृत्यु उन्ही लोगों के लिए सुंदर है जिन्होंने अपना जीवन बिना किसी अवरोध, बिना किसी बाधा और बिना किसी दमन के जिया है मृत्यु उनके लिए ही सुन्दर है जिन्होंने अपना जीवन सुन्दर रूप से जिया है, जो जीवन से डर कर नहीं जिए हैं, जिन्होंने जीने का साहस किया है – जिन्होंने प्रेम किया है, जिन्होंने नृत्य किया है, जिन्होंने उत्सव मनाया है।
“मृत्यु एक परम उत्सव बन जाती है यदि तुम्हारा जीवन एक उत्सव है। मुझे इस प्रकार बताने दो: जैसा/जो भी तुम्हारा जीवन है, मृत्यु उसी को उद्घाटित करती है। यदि तुम अपने जीवन में दुखी रहे, मृत्यु भी दुःख ही प्रकट करती है। मृत्यु एक महान उद्घोषक है। यदि तुम अपने जीवन में प्रसन्न रहे, मृत्यु भी प्रसन्नता प्रकट करती है। यदि तुमने केवल शारीरिक आराम और सुख का जीवन जिया है, तब निश्चित रूप से मृत्यु बहुत ही असुविधाजनक और अप्रिय रहेगी क्योंकि तुम्हें शरीर को छोड़ना होगा। शरीर केवल एक अस्थाई निवास है, एक सराय है जिसमें हम एक रात रुकते हैं और सुबह होते ही हमें चले जाना होता है। वह तुम्हारा स्थाई निवास नहीं है, वह तुम्हारा घर नहीं है।”
Osho, The Art of Dying, Talk #1
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यह किसी भी क्षण घट सकती है
“जो व्यक्ति सोचता है कि मृत्यु जीवन के विरुद्ध है वह कभी भी अहिंसक नहीं हो सकता। यह असंभव है। जो व्यक्ति सोचता है कि मृत्यु क्षत्रु है वह अपने कभी स्वयं में विश्रांत नहीं हो सकता। वह असंभव है। तुम विश्रांत कैसे हो सकते हो जब कि क्षत्रु किसी भी क्षण तुम्हारी प्रतीक्षा में है, वह तुम पर टूट पड़ेगा और तुम्हें नष्ट कर देगा। तुम निश्चिंत कैसे हो सकते हो जब मृत्यु तुम्हारे लिए प्रतीक्षारत है, और उसकी परछाई तुम्हें घेरे हुए है। वह किसी भी क्षण घट सकती है। जब मृत्यु सामने है तब तुम विश्राम कैसे कर सकते हो? विश्रांत कैसे हो सकते हो? क्षत्रु तुम्हें विश्रांत होने नहीं देगा।
“इसलिए यह तनाव, यह चिंता, विषादपूर्ण मानवता। जितना तुम मृत्यु से लड़ते हो, उतने ही चिंताग्रस्त तुम हो जाओगे, ऐसा होना अनिवार्य है/अवश्यंभावी है। यह उसका स्वाभाविक परिणाम है।”
Osho, Living Tao, Talk #1
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तुम्हारा भीतरी भाव मृत्यु है
“ऐसा है, तुम्हारी आस्तित्व्गत भीतरी अवस्था मृत्यु कि है, तुम इसे छिपाने का प्रयास कर सकते हो, और तुम इसे नज़रंदाज़ कर सकते हो लेकिन मृत्यु तुम्हारी भीतरी आस्तित्व्गत अवस्था है। हर क्षण तुम मृत्यु के भय से कम्पित हो। हर क्षण मृत्यु तुम्हारे भीतर गूंजायमान है। तुम्हारा शरीर मृत्यु की और तेजी से गति कर रहा है। हर क्षण मृत्यु को और निकट ले आता है, और चारों और से मृत्यु तुम पर नजर रखे हुए है। तुम एक वृद्ध को देखते हो और तुम्हें मृत्यु की याद आ जाती है; तुम एक नष्ट, धूल-ध्वसित घर देखते हो और तुम्हारे भीतर मृत्यु की स्मृतियां हलन-चलन करने लगती हैं; एक मुरझाया फूल ही मृत्यु की गंध तुम तक लाने के लिए पर्याप्त है; एक झरना जो सूख गया है—फिर वह मृत्यु ही है जो तुम्हें देख रही है। कहीं भी देखो मृत्यु हर तरफ छाई है, और तुम उससे कम्पित हो।”
Osho, Nowhere To Go But In, Talk #1
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क्यों हम मृत्यु से भयभीत हैं?
“हमें जीवन से इतनी आसक्ति क्यों है और क्यों हम मृत्यु से भयभीत हैं? तुमने इस बारे में कभी सोचा नहीं होगा। हमारी जीवन से इतनी आसक्ती और मृत्यु से इतना भयभीत होने का कारण अकल्पनीय है। हम जीवन से इतना आसक्त इसलिए हैं क्योंकि वास्तव में हम जीवित ही नहीं हैं। और समय बीतता जा रहा है, मृत्यु निकट और निकट आती जा रही है। और हमें भय है कि मृत्यु निकट आ रही है और हम अभी तक जिए ही नहीं।
“यही है भय: मृत्यु आ जाएगी और हम अभी तक जिए ही नहीं। हम तो बस जीने की तैयारी कर रहें हैं। कुछ भी तैयार नहीं है; जीवन अभी हुआ ही नहीं। हमें उस परमानंद का बोध ही नहीं है जिसे जीवन कहते हैं: हमने उस आनंद को जाना नहीं जिसे जीवन कहते हैं। हम बस श्वास भीतर और बाहर छोड़ रहें हैं। हम बस किसी तरह यहां हैं। जीवन बस एक आस है और मृत्यु निकट आ रही है। और यदि जीवन अभी नहीं हुआ है और उससे पहले ही मृत्यु हो गई, तो निश्चित ही स्वाभाविक है कि हम मर जाना पसंद करेंगे।
“केवल वे ही लोग जो जिए हैं, जिन्होंने वास्तव में जीवन जिया है, मृत्यु के लिए तैयार हैं, उसके स्वागत में हैं, उसके प्रति ग्रहणशील हैं, उसके प्रति धन्यवाद में हैं. तब मृत्यु क्षत्रु नहीं है. तब मृत्यु एक परिपूरक है.”
Osho, The Supreme Doctrine, Talk #9
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जीवन दोनों तरफ से मृत्यु से घिरा हुआ है
“जन्म मृत्यु में ले जाता है; और जन्म से पहले मृत्यु होती है। तो अगर तुम जीवन को वैसा ही देखना चाहते हो जैसा वह है तो तुम पाओगे कि उसके दोनों छोरों पर मृत्यु खड़ी है। मृत्यु आरंभ है और फिर मृत्यु ही अंत भी है; और उनके बीच में जीवन भ्रम भर है। तुम दो मृत्युओं के बीच जीवित अनुभव करते हो। दो मृत्युओं को जोड़ने वाले रास्ते को तुम जीवन कहते हो। बुद्ध कहते हैं कि यह जीवन जीवन नहीं है; यह जीवन दुख है, यह जीवन मृत्यु है।
“हम जीवन से इतने सघन रूप से सम्मोहित हैं, हम जीने के लिए इतने आतुर हैं कि बुद्ध हमें जीवन-विरोधी मालूम पड़ते हैं। हम जिंदा रहने को ही सब कुछ मानते हैं। हम मृत्यु से इतने भयभीत हैं कि बुद्ध हमें मृत्यु के प्रेम में मालूम पड़ते हैं। यह बात हमें कुछ अजीब सी लगती है। बुद्ध आत्मघाती प्रतीत होते हैं। और इसके लिए अनेक लोगों ने बुद्ध की आलोचना की है।
Osho, The Book of Secrets, Talk #24
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मृत्यु के प्रति जागरूक हो जाओ
तथ्य के प्रति सजग रहो कि मृत्यु निकट से निकटतर आ रही है और हमें उसके लिए तैयार रहना है…
“तो पहली तो बात यह है कि मृत्यु के प्रति सजग होओ। उस पर विचार करो, उसे देखो। उस पर मनन करो। डरो मत और तथ्य से भागो मत। मृत्यु है और उससे बचा नहीं जा सकता है। तुम्हारे साथ ही मृत्यु अस्तित्व में आ गई है।
“तुम्हारे साथ ही मृत्यु अस्तित्व में आ गई है। तुम्हारे साथ ही तुम्हारी मृत्यु का जन्म हुआ है और तुम उससे बच नहीं सकते। तुमने उसे अपने भीतर छिपा रखा है। उसके प्रति जागरूक हो जाओ। जिस क्षण तुम इस बोध से भरोगे कि मैं मरने वाला हूं, कि मेरी मृत्यु निश्चित है, उसी क्षण तुम्हारा पूरा चित्त किसी भिन्न आयाम में गतिमान हो जाएगा। तब भोजन शरीर की ही बुनियादी जरूरत रहेगी, आत्मा की नहीं। भोजन के बावजूद मृत्यु होती है; वह तुम्हें मृत्यु से नहीं बचा सकता। भोजन मृत्यु को केवल टालने में सहयोगी होता है। वैसे ही अच्छा मकान भी मृत्यु से नहीं बचा सकता है। अच्छा मकान तुम्हें आराम से, सुविधा से मरने की व्यवस्था जुटा देगा। लेकिन चाहे सुविधा से मरो या असुविधा से, मृत्यु की घटना एक ही है।
“जीवन में तुम गरीब या अमीर हो सकते हो; लेकिन मृत्यु में सब बराबर हैं। मृत्यु में सर्वाधिक साम्यवाद है। तुम कैसे भी जीओ, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मृत्यु समान ढंग से घटती है। जीवन में समानता असंभव है; मृत्यु में असमानता असंभव है। तो मृत्यु के प्रति सजग होओ, उस पर मनन करो।”
Osho, The Book of Secrets, Talk #23
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तुम्हें मृत्यु के द्वार से गुजरना होगा
“मृत्यु जीवन से ज्यादा महत्वपूर्ण है. जीवन बस तुच्छ है, सतही है; मृत्यु गहरी है. मृत्यु के साथ तुम वास्तविक जीवन की और बढ़ते हो, और जीवन के द्वारा तुम केवल मृत्यु के सिवाय कहीं नहीं पहुंचते हो.
“जो भी हम जीवन के बारे में कहते और अर्थ देते हैं वह बस मृत्यु की और यात्रा है. अगर तुम यह समझ सकते हो कि तुम्हारा पूरा जीवन बस एक यात्रा है और कुछ नहीं, तब तुम जीवन में कम और मृत्यु में ज्यादा उत्सुक हो. और एक बार जब कोई मृत्यु में ज्यादा उत्सुक हो जाए, तब वह जीवन की गहनतम गहराइयों में जा सकता है; नहीं तो वह केवल सतह पर रह जाएगा.
“लेकिन हम मृत्यु में जरा भी उत्सुक नहीं हैं: बल्कि, हम तथ्यों से भागते हैं, हम निरंतर तथ्यों से भागते हैं। मृत्यु है, और हम हर क्षण मर रहें हैं। मृत्यु कुछ ऐसी बात नहीं है जो दूर कहीं उपस्थित है, वह यहीं और इसी क्षण है: हम मर रहे हैं। लेकिन जब कि हम मर रहे हैं, हम जीवन के बारें में चिंतित होते रहतें हैं। यह जो जीवन को लेकर चिंता है, यह जो जीवन को लेकर अति-चिंता है, वह केवल एक भगोड़ापन है, बस एक भय है। मृत्यु उपस्थित है, भीतर गहरे में–बढ़ती हुई।
“जीवन के प्रति इस आग्रह को बदलें, अपना ध्यान चारों और ले जाएं. यदि तुम मृत्यु के साथ संबंधित हो जाओगे, तुम्हारा जीवन पहली दफा तुम्हारे लिए प्रकट हो जाएगा, क्योंकि जिस क्षण तुम मृत्यु के साथ सहज होते हो, तुमने वह जीवन पा लिया जिसकी मृत्यु नहीं हो सकती। जिस क्षण तुमने मृत्यु को जान लिया, तुमने वह जीवन जान लिया जो शाश्वत है।
“मृत्यु एक बनावटी जीवन के लिए द्वार है उस के लिए जिसे हम जीवन कहते हैं, सतही, तुच्छ. वहां द्वार है। यदि तुम उस द्वार से गुजरोगे तो तुम नए जीवन में पहुंच जाओगे–गहरे, शाश्वत, मृत्यु-रहित, मृत्युहीन. तो उस तथाकथित जीवन से – जो कि और कुछ नहीं बस मरना है, तुम्हें मृत्यु के द्वार से गुजरना होगा; तभी तुम वह जीवन उपलभ्ध कर पाते हो जो वास्तव में आस्तित्वगत है और सक्रीय भी–जिसमें कोई मृत्यु नहीं।”
Osho, Meditation: The Art of Ecstasy, Talk #11
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मृत्यु से अधिक असत्य कुछ भी नहीं है
“मृत्यु के संबंध में पहली बात आपसे यह कहना चाहूंगा कि मृत्यु से अधिक असत्य और कुछ भी नहीं है। लेकिन मृत्यु ही सत्य मालूम होती है। न केवल सत्य मालूम होती है, बल्कि जीवन का केंद्रीय सत्य भी वही मालूम होती है। और ऐसा प्रतीत होता है कि सारा जीवन मृत्यु से घिरा हुआ है। और चाहे हम भूल जाते हों, भुला देते हों, लेकिन फिर भी मृत्यु चारों तरफ निकट ही खड़ी रहती है। अपनी छाया से भी ज्यादा अपने पास मृत्यु है।
“जीवन का जो रूप हमने दिया है, वह भी मृत्यु के भय के कारण ही दिया है। मृत्यु के भय ने समाज बनाया है, राष्ट्र बनाए हैं, परिवार बनाए हैं, मित्र इकट्ठे किए हैं। मृत्यु के भय ने धन इकट्ठे करने की दौड़ दी है, मृत्यु के भय ने पदों की आकांक्षा दी है, और सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि मृत्यु के भय ने ही हमारे भगवान और हमारे मंदिर भी खड़े कर दिए हैं। मृत्यु से भयभीत घुटने टेककर प्रार्थना करते हुए लोग हैं। मृत्यु से भयभीत आकाश की तरफ, परमात्मा की तरफ हाथ जोड़े हुए लोग हैं। और मृत्यु से ज्यादा असत्य कुछ भी नहीं है। इसीलिए मृत्यु को सत्य मानकर हमने जो भी जीवन की व्यवस्था की है, वह सब भी असत्य हो गई है।
“लेकिन मृत्यु का असत्य हमें कैसे पता चले? यह हम कैसे जान पाएं कि मृत्यु नहीं है? और जब तक हम यह न जान पाएं, तब तक हमारा भय भी विलीन नहीं होगा। और जब तक हम यह न जान पाएं कि मृत्यु असत्य है, तब तक जीवन हमारा सत्य नहीं हो सकता है। जब तक मृत्यु का भय है, तब तक जीवन सत्य नहीं हो सकता है। और जब तक मृत्यु से हम डरे हुए कंप रहे हैं, तब तक जीवन को जीने की क्षमता भी हम नहीं जुटा सकते। जीवन को केवल वही जी सकता है, जिसके सामने से मृत्यु की छाया विदा और विलीन हो गई है। कंपता हुआ मन कैसे जीएगा? डरा हुआ मन कैसे जीएगा? और मौत जब प्रतिपल आती हुई मालूम पड़ती हो तो हम कैसे जीएं? हम कैसे जी सकते हैं?