दुनिया को मौत सिखाने वाले ओशो मरे थे या मारे गए थे?

मृत्यु खतरनाक शब्द है. बहुतों के पसीने छूट जाते हैं ये शब्द सुनकर. बहुत लोग मरना ही नहीं चाहते. लेकिन, एक शख्स था जो मृत्यु का उत्सव मनाने की बात करता था. उसकी मौत के बाद उसके फ़ॉलोवर्स ने उत्सव मनाया भी. झूमे, नाचे, गाए. लेकिन इस शख्स की मौत विवादों से घिरी है.

भारत के इस बेहद विवादित शख्स का नाम है ओशो. विवादित, अपने विचारों की वजह से. कुछ लोग बुरी तरह खार खाए रहते हैं ओशो से. गरियाते हैं. कुछ लोग पसंद भी करते हैं. कुछ लोग चुपके-चुपके पढ़ते, सुनते तो हैं, पर पब्लिक में ज्यादा बोलते नहीं. नाम लेने में भी सकुचाते हैं. कुछ कट्टर भक्त हैं. चेला वेला टाइप. अब उनके चेलों में ही ओशो की वसीयत को लेकर मार-काट मची है. एक ग्रुप का कहना है उनके ही कुछ चेलों ने वसीयत की लालच में उनकी हत्या करवा दी.

ओशो को क्या कहा जाए. आध्यात्मिक गुरु, दार्शनिक, मिस्टिक, पाखंडी या आलोचक. ये सब कुछ उन्हें कहा जाता रहा है. कठिन है थोड़ा कोई एक शब्द चुनना, क्योंकि वो कई जगहों पर सीधे और कई जगहों पर बड़े उल्टे नज़र आते हैं. खुद को किसी फ्रेम से परे बताते थे. संगठित धर्म की बखिया उधेड़ते थे.

प्रेम, ध्यान, विज्ञान की बातें करते थे. बुद्ध, महावीर उनके फेवरिट थे. आस्तिकता-नास्तिकता पर बोलते थे. मुल्ला नसीरुद्दीन के जोक्स सुनाते थे. सुई से लेकर जहाज तक, सब पर बोल डाले. ज्यादातर ऑडियो, वीडियो और प्रिंट में रिकॉर्ड है. दुनियाभर में कई भाषाओं में देखा-पढ़ा जाता है. गरीबी के विरोधी थे. रॉयल लाइफ जीते थे. शिष्यों ने 93 रॉल्स रॉयस कारें गिफ्ट की थीं. कहते थे ”उत्सव हमारी जाति, आनंद हमारा गोत्र.” ‘ज़ोरबा द बुद्धा’ की कल्पना करते थे. यानी एक ऐसा नया आदमी, जो ज़ोरबा की तरह जीवन का आनंद उठाए, उससे भागे नहीं और बुद्ध की तरह भीतर से शांत चित्त भी हो.

ज्यादा विवादों में रहे अपने सेक्स सम्बन्धी विचारों की वजह से. ‘संभोग से समाधि की ओर’ उनकी किताब बड़ी कंट्रोवर्शियलरही. कई लोग उन्हें ‘सेक्स गुरु’ भी कहते हैं. मृत्यु के बाद सेक्स दूसरा शब्द है, जिसे सुनकर लोगों के रोंगटे स्टैंड-अप मोड में आ जाते हैं. यहां सेक्स पर पब्लिकली बात करना- स्ट्रिक्टली प्रोहिबिटेड यू नो.

कौन थे ओशो?

ओशो का असली नाम था रजनीश चन्द्र मोहन जैन. बाद में आचार्य रजनीश हो गए. उनके कट्टर चेले ज्यादा भावुक हो गए, तो उन्हें भगवान श्री रजनीश कहने लगे. बाद में भगवान हट गया, रजनीश भी हट गया. नया नाम रखा ओशो. 1931 में मध्य प्रदेश के कुचवाड़ा गांव में पैदा हुए थे. फिलॉसफी के प्रोफ़ेसर रहे. प्रोफेसरी छोड़कर 60 के दशक में उन्होंने पब्लिक में बोलना शुरू किया. तर्क देने और बोलने में तेज थे. अपने विचारों की वजह से फेमस हो गए. 1969 में उन्हें दूसरे वर्ल्ड हिन्दू कॉन्फ्रेंस में बुलाया गया.

यहां उन्होंने कहा कि कोई भी ऐसा धर्म, जो जीवन को व्यर्थ बताता हो, वो धर्म नहीं है. पुरी के शंकराचार्य नाराज हो गए. उन्होंने ओशो का भाषण रुकवाने की भी कोशिश की. इसके बाद ओशो मुंबई आ गए. पूना (अब के पुणे) के कोरेगांव पार्क में आश्रम था. ओशो ने कई तरह की ध्यान विधियां विकसित कीं. विचार फैले तो पश्चिम वाले काफी लोग भी उनके पीछे लाइन लगा लिए. 1981 तक यहां सालाना 30,000 लोग आते थे. जगह छोटी पड़ने लगी. विदेशियों के आने और आश्रम को लेकर 1977-78  में प्रधानमंत्रीमोरारजी देसाई से खटपट हो गई थी.

शिष्यों ने अमेरिका बुला लिया. ओरेगॉन की तकरीबन 64, 229 एकड़ बंजर ज़मीन पर बड़ा सा कम्यून बनाया गया. नाम दिया गया रजनीशपुरम. भीड़ वहां भी बढ़ने लगी. वहां की सरकार भड़क गयी. वहां के गवर्नर को आश्रम पर नज़र रखने को कहा गया. इसे एक ‘एलियन कल्ट’ द्वारा उनके देश में आक्रमण बताया गया. कहा गया ओशो उनके कल्चर और धर्म को बर्बाद कर रहे हैं.

रजनीशपुरम

बाद में रजनीशपुरम में अवैध गतिविधियों का आरोप लगा. ओशो ने कहा उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं. उनकी सेक्रेटरी शीला को बायोटेरर अटैक का दोषी पाया गया और 20 साल के लिए जेल में डाल दिया गया. बाद में प्रवासी अधिनियम के उल्लंघन और कई अन्य मामलों में ओशो को गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें देश निकाला दे दिया गया. अमेरिका के अलावा 21 देशों ने उनके प्रवेश पर प्रतिबंध लगा रखा था.

ओशो की सेक्रेटरी शीला

इसके बाद 1985 में पूना लौट आये और पहले से भी ज्यादा तीखा बोलने लगे. नास्तिकता की बात करने लगे. बाद में बीमार हुए और 19 जनवरी 1990 को ओशो की मौत हो गयी.

अमेरिका में गिरफ्तार ओशो

 

पर कैसे हुई ओशो की मौत? कौन था जिम्मेदार?

ओशो की मौत को लेकर बहुत से कन्फ्यूजन हैं और कई थ्योरीज हैं.

1. माना जाता है अमेरिकी सरकार ने ओशो को ‘थेलियम’ नाम का स्लो पॉइजन दे दिया था, जिससे धीरे-धीरे वो मौत की तरफ बढ़े. अमेरिका से लौटने के बाद ओशो ने खुद बताया कि मुझमें ज़हर के लक्षण हैं. मेरा रजिस्टेंस कमजोर हो गया है. मुझे खुद इस बात का शक था. जब मुझे अमेरिका में गिरफ्तार किया गया था, और बिना कोई वजह बताये उन्होंने मुझे बेल नहीं दी. इसके बाद ही मुझमें ज़हर के लक्षण के आ गये. 

2. एक और विवाद अभी जल्द ही सामने आया है जिसमें कहा गया कि उनके कुछ ख़ास लोगों ने ही उनकी महंगी प्रॉपर्टी के लालच में उन्हें मार दिया. ये बड़ी मिस्ट्री है. जिस दिन ओशो की मौत हुई उस दिन के पांच घंटों की कहानी थोड़ी थ्रिलर है. 1 बजे से लेकर 5 बजे तक. उस दिन ओशो के डॉक्टर गोकुल गोकानी को 1 बजे फ़ोन किया गया कि किसी की तबीयत बहुत खराब है. जल्दी आ जाएं. गोकानी बाद में बोले कि उन्हें शाम 5 बजे कमरे में जाने दिया गया. चार घंटे तक क्या हुआ, किसी को नहीं पता. वहां अमृतो और जयेश (माइकल ओ ब्रायन) मौजूद थे. ओशो के हाथ में उल्टियों की छीटें थीं. ऐसा लग रहा था जैसे उनके मरने का इंतज़ार किया जा रहा था.

डॉक्टर गोकानी

3. सवाल ये है कि उस वक्त आश्रम में और भी डॉक्टर मौजूद थे. उनसे कंसल्ट क्यों नहीं किया गया? उन्हें हॉस्पिटल क्यों नहीं ले जाया गया? गोकानी कहते हैं ”अमृतो ने कहा ओशो ने अभी-अभी शरीर छोड़ा है. आपको उनका डेथ सर्टिफिकेट लिखना है. उनका शरीर गर्म था और साफ़ है कि उन्होंने अपना शरीर एक घंटे से पहले नहीं छोड़ा होगा.’’ गोकानी कहते हैं उन्होंने ओशो को अंतिम सांस लेते हुए नहीं देखा. इसलिए उन्होंने जयेश और अमृतो से उनकी मृत्यु की वजह पूछी. उन्होंने गोकानी से दिल की बीमारी के बारे में लिखने को कहा, ताकि शव का पोस्टमार्टम न हो सके. सवाल ये भी है कि गोकानी ने उल्टियों के बारे में क्यों कुछ नहीं पूछा?

बाद में उनका अंतिम संस्कार भी बहुत हड़बड़ी में किया गया. ओशो की सेक्रेटरी नीलम कहती हैं जब उन्होंने ओशो की मां को मौत की बात बताई तो उन्होंने कहा – ”नीलम, उन्होंने उसे मार दिया.”

अपनी मां के साथ ओशो

4. ओशो की वसीयत को लेकर भी बवाल है. कोर्ट में झगड़ा चल रहा है. उनके एक फ़ॉलोवर हैं, योगेश ठक्कर. उन्होंने इस वसीयत को कोर्ट में चैलेंज कर दिया है. उनका कहना है ये वसीयत जाली है. उनका दावा है कि 1989 में बनी इस वसीयत के बारे में किसी को पता नहीं था. 2013 में अचानक इसे अमेरिका की एक अदालत में एक मुकदमे की सुनवाई के दौरान पेश किया गया.

ओशो की वसीयत, फोटो गूगल से

ठक्कर का कहना है कि ये वसीयत ओशो की मौत के बाद तैयार की गई है. इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स के एक मामले में ये वसीयत सामने आयी थी. इस वसीयत से ओशो की सभी चीजें ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन के ट्रस्टी जयेश के नाम हो गईं. उनकी सेक्रेटरी रही शीला ने भी अपनी किताब ‘डोंट किल हिम’ में उनकी मौत पर सवाल उठाए हैं.

ओशो का मृत शरीर

मृत्यु का उत्सव मनाने को कहने वाले ओशो की खुद की मौत बहुत रहस्यमय रही. रहस्य की परतें हैं. परतों का क्या. हो सका तो खुलती रहेंगी धीरे-धीरे वरना सब कुछ रहस्य ही समझो. मिस्ट्री टू बी डिकोडेड.

पुणे आश्रम के लाओत्से हॉल में उनकी कब्र पर लिखा है- ओशो, जो न पैदा हुए न मरे. इस धरती पर 11 दिसम्बर 1931 से 19 जनवरी 1990 के बीच भ्रमण के लिए आए.

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