ओशो कहते हैं कि जहां तक मनु स्मृति मे वर्णित चार वर्णों की व्यवस्था का प्रश्न है, समाज को इस प्रकार की व्यवस्था में बाँटना बड़ा ही वैज्ञानिक प्रयोग था. यदि मनुष्यों के व्यक्तित्व के प्रकार की दृष्टि से देखें, तो पूरी समष्टि में चार तरह के ही व्यक्तित्व हैं शूद्र, वैश्य, क्षत्रिय तथा ब्राह्मण.
शूद्र : शुद्र उसे कह सकते हैं जो आलस्य से भरा है, जिसे कुछ भी करने की इच्छा नहीं है. भोजन मिल जाये, वस्त्र उप्लब्ध हो जायें, बस वही पर्याप्त है, जीने के लिए. वह जी लेगा.
वैश्य : दूसरा वर्ग वैश्य है, जिसके लिये जीवन लग जाये, परंतु हर हाल में धन एकत्र करना है, पद पाना है. तिजोरी भरने के वह सब उपाय करता है, चाहे सब कुछ खो जाये, आत्मा नष्ट हो जाये, सम्वेदनायें मर जायें! पर उसे चिन्ता है, तो बस धन की, बैंक बैलेंस की.
क्षत्रिय : तीसरा क्षत्रिय वर्ग है. इसकी ज़िन्दगी में अंह्कार के सिवा कुछ नहीं है. किसी भी तरह यह साबित करना कि “मैं ही सब कुछ हूं”. बस इसी बात पर ज़ोर है इसका. धन जाये, पद जाये, जीवन जाये, सब कुछ दांव पर लगा देगा यह परंतु दुनिया को दिखा देगा कि “मै कुछ हूं”.
ब्राह्मण : ब्राह्मण वह है जो सिर्फ ब्रह्म की तलाश में है और कह्ता है कि संसार में सब व्यर्थ की आपाधापी है. न तो आलस्य का जीवन अर्थपूर्ण है, क्योंकि वो प्रमाद है; न धन के पीछे की दौड़ अर्थपूर्ण है, क्योंकि वो कहीं भी नहीं ले जाती है; न अहंकारपूर्ण जीवन अर्थपूर्ण है, क्योंकि जगत के अनंत विस्तार में हमारा अस्तित्व ही क्या है ? हम कौन हैं? कहां से आये हैं ? कहां जायेंगे ? जीवन के इन मूल प्रश्नों के साथ आत्म-साक्षात्कार की यात्रा मे उतर जाना ही ब्राह्मण होना है.
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