मृत्यु दंड। मैं इसे दंड नहीं कह सकता, यह अपराध है। OSHO

मृत्यु-दंड

मृत्यु दंड अकेले व्यक्ति के खिलाफ समाज द्वारा किया जाने वाला अपराध है, जो कि असहाय है। मैं इसे दंड नहीं कह सकता, यह अपराध है।
और तुम समझ सकते हो कि यह क्यों होता है : यह बदला है। समाज बदला ले रहा है क्योंकि व्यक्ति ने समाज के नियमों का पालन नहीं किया; समाज उसकी हत्या कर देने को तत्पर है। लेकिन कोई इस बात की परवाह नहीं करता कि जब कोई व्यक्ति हत्या करता है तो यह पता चलता है कि वह मानसिक रुप से बीमार है। उसे जेल भेजने या फांसी देने की जगह, उसे नर्सिंग होम भेजा जाना चाहिए जहां उसकी–शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, आध्यात्मिक देखभाल हो सके। वह बीमार है। उसे समाज की करुणा की जरूरत है; वहां दंड या सजा का कोई सवाल ही नहीं है।

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