विवाह दो शरीरों का हो सकता है, विवाह दो आत्‍माओं का नहीं। दो आत्‍माओं का प्रेम हो सकता है। OSHO

तो मैंने समझा की अगर थोड़ी सह किरण से इतनी बेचैनी हुई तो फिर पूरे प्रकाश की चर्चा कर लेनी उचित है। ताकि साफ हो सके कि ज्ञान मनुष्‍य को धार्मिक बनाता है या अधार्मिक बनाता है। यह कारण था इसलिए यह विषय चुना। और अगर यह कारण न होता तो शायद मुझे अचानक खयाल न आता इसे चुनने का। शायद इस पर मैं कोई बात नहीं करता। इस लिहाज से वे लोग धन्‍यवाद के पात्र है, जिन्‍होंने अवसर पैदा किया यह विषय चुनने का। और अगर आपको धन्‍यवाद देना हो तो मुझे मत देना। वह भारतीय विद्या भवन ने जिन्‍होंने सभा आयोजित की थी, उनको धन्‍यवाद देना। उन्‍होंने ही यह विषय चुनाव दिया। मेरा इसमें कोई हाथ नहीं है।

एक मित्र ने पूछा है, कि मैंने कहा कि काम का रूपांतरण ही प्रेम बनता है। तो उन्‍होंने पूछा है कि मां का बेटे के लिए प्रेम—क्‍या वह भी काम है। वह भी सेक्‍स है। और भी कुछ लोगों ने इसी तरह के प्रश्न पूछे है।

इसे थोड़ा समझ लेना उपयोगी होगा।

एक तल तो शरीर का तल है—बिलकुल फिजियोलॉजलीकल। एक आदमी वेश्‍या के पास जाता है। उसे जो सेक्‍स का अनुभव होता है। वह शरीर का गहरा नहीं हो सकता। वेश्‍या शरीर बेच सकती है। मन नहीं बेच सकती। और आत्‍मा को बेचने का तो कोई उपाय ही नहीं है। शरीर –शरीर से मिल सकता है।

एक आदमी बलात्‍कार करता है। तो बलात्‍कार में किसी का मन भी नहीं मिल सकता ओर किसी की आत्‍मा भी नहीं मिल सकती। शरीर पर बलात्‍कार किया जा सकता है। आत्‍मा पर बलात्‍कार करने का कोई उपाय नहीं है। ने खोजा जा सका हे। न खोजा जा सकता है। तो बलात्‍कार में जो भी अनुभव होगा वह शरीर का होगा। सेक्‍स का प्राथमिक अनुभव शरीर से ज्‍यादा गहरा नहीं होता। लेकिन शरीर के अनुभव पर ही जो रूक जाते है। वे सेक्‍स के पूरे अनुभव को उपलब्ध नहीं होते। उन्‍हें मैंने जो गहराइयों की बातें कहीं है। उसका कोई पता नहीं चल सकता। और अधिक लोग शरीर के तल पर ही रूक जाते है।

इस संबंध में यह भी जान लेना जरूरी है कि जिन देशों में भी प्रेम के बिना विवाह होता है। उस देश में सेक्‍स शरीर के तल पर रूक जाता है। और उससे गहरे नहीं जा सकता।

विवाह दो शरीरों का हो सकता है, विवाह दो आत्‍माओं का नहीं। दो आत्‍माओं का प्रेम हो सकता है।

वह अगर प्रेम से विवाह निकलता हो, तब तो विवाह एक गहरा अर्थ ले लेता है। और अगर विवाह दो पंडितों के और दो ज्‍योतिषियों के हिसाब किताब से निकलता हो, और जाति के विचार से निकलता हो और धन के विचार से निकलता हो तो वैसा विवाह कभी भी शरीर से ज्‍यादा गहरा नहीं जा सकता।

लेकिन ऐसे विवाह का एक फायदा है। शरीर मन के बजाय ज्‍यादा स्‍थिर चीज है। इसलिए शरीर जिन समाजों में विवाह का आधार है, उन समाजों में विवाह सुस्‍थिर होगा। जीवन भर चल जाएगा।

शरीर अस्‍थिर चीज नहीं है। शरीर बहुत स्‍थिर चीज है। उसमें परिवर्तन बहुत धीरे-धीरे आता है। और पता भी नहीं चलता। शरीर जड़ता का तल है। इसलिए जिन समाजों ने यह समझा कि विवाह को स्‍थिर बनाना जरूरी है—एक ही विवाह पर्याप्‍त हो, बदलाहट की जरूरत न पड़े; उनको प्रेम अलग कर देना पडा। क्‍योंकि प्रेम होता है मन से और मन चंचल है।

जो समाज प्रेम के आधार पर विवाह को निर्मित करेंगे, उन समाजों में तलाक अनिवार्य होगा। उन समाजों में विवाह परिवर्तित होगा। विवाह स्‍थायी व्‍यवस्‍था नहीं हो सकती है। क्‍योंकि प्रेम तरल है।

मन चंचल है, और शरीर स्‍थिर और जड़ है।

आपके घर में एक पत्‍थर पडा हुआ है। सुबह पत्‍थर पड़ा था। सांझ भी पत्‍थर वहीं पडा रहेगा। सुबह एक फूल खिला था। शाम तक मुरझा जाएगा। फूल जिंदा है। जन्मे गा, मरेगा। पत्‍थर मुर्दा है। वैसे का वैसा सुबह था। वैसा ही श्‍याम पडा रहेगा। पत्‍थर बहुत स्‍थिर है।

विवाह पत्‍थर पडा हुआ है। शरीर के तल पर जो विवाह है, वह स्‍थिरता लाता है। समाज के हित में है। लेकिन एक-एक व्‍यक्‍ति के अहित में है। क्‍योंकि वह स्‍थिरता शरीर के तल पर लायी गई है ओर प्रेम से बचा गया है।

इसलिए शरीर के तल से ज्‍यादा पति और पत्‍नी का संभोग और सेक्‍स नहीं पहुंच पात है। एक यांत्रिक , एक मेकैनिकल रूटीन हो जाती है। एक यंत्र की भांति जीवन हो जाता है। सेक्‍स का। उस अनुभव को रिपिट करते रहते हे। और जड़ होते चले जाते है। लेकिन उससे ज्‍यादा गहराई कभी भी नहीं मिलती।

जहां प्रेम के बिना विवाह होता है। उस विवाह में और वेश्‍या के पास जाने में बुनियादी भेद नहीं, थोड़ा सा भेद है। बुनियादी नहीं है वह। वेश्‍या को आप एक दिन के लिए खरीदते है और पत्‍नी को आप पूरे जीवन के लिए खरीदते है। इससे ज्‍यादा फर्क नहीं पड़ता। जहां प्रेम नहीं है, वहां खरीदना ही है। चाहे एक दिन के लिए खरीदो चाहे पूरी जिंदगी के लिए खरीदो। हालांकि साथ रहने से रोज-रोज एक तरह का संबंध पैदा हो जाता है एसोसिएशन से। लोग उसी को प्रेम समझ लेते है। वह प्रेम नहीं है। वह प्रेम और ही बात है। शरीर के तल पर विवाह है इसलिए शरीर के तल से गहरा संबंध कभी भी नहीं उत्‍पन्‍न हो पाता है। यह एक तल है।

दूसरा तल है सेक्‍स का—मन का तल, साइकोलॉजीकल वात्‍यायन से लेकर पंडित कोक तक जिन लोगों ने भी इस तरह के शास्‍त्र लिखे हे सेक्‍स के बाबत वे शरीर के तल से गहरे नही जाते। दूसरा तल है मानसिक। जो लोग प्रेम करते है और फिर विवाह में बँधते है। उनका प्रेम शरीर के तल से थोड़ा गहरा जाता है। वह मन तक जाता है। उसकी गहराई साइकोलॉजीकल है। लेकिन वह भी रोज-रोज पुनरूक्‍ति होने से थोड़े दिनों में शरीर के तल पर आ जाता है। और यांत्रिक हो जाता है।

जो व्‍यवस्‍था विकसित की है दो सौ वर्षों में प्रेम विवाह की, वह मानसिक तल तक सेक्‍स को ले जाता है, ,और आज पश्‍चिम में आज समाज अस्‍त-व्‍यस्‍त हो गया है। क्‍योंकि मन का कोई भरोसा नहीं है, वह आज कहता है कुछ, कल कुछ और कहने लग जाता है। सुबह कुछ कहने लगता है, श्‍याम कुछ कहने लगता है। घड़ी भर पहले कुछ कहता है। घड़ी भर बाद कुछ कहने लगता है।

शायद आपने सुना होगा कि बायरन ने जब शादी की तो कहते है कि तब वह कोई साठ-सत्‍तर स्‍त्रियों से संबंधित रह चुका था। एक स्‍त्री ने उसे मजबूर की कर दिया विवाह के लिए। जो उसने विवाह किया और जब वह चर्च से उतर रहा था विवाह करके अपनी पत्‍नी का हाथ-हाथ में लेकर। घंटिया बज रही है चर्च की। मोमबत्तियाँ अभी जो जलाई गई थी। जल रही है। अभी जो मित्र स्‍वागत करने आये थे। वे विदा हो रहे है। और वह अपनी पत्‍नी को हाथ पकड़कर सामने खड़ी घोड़ा-गाड़ी में बैठने के लिए चर्च की सीढ़ियाँ उतर रहा है। तभी उसे चर्च केसामने ही एक और स्‍त्री जाती हुई दिखाई देती है। एक क्षण को वह भूल जाता है अपनी पत्‍नी को। उसके हाथ को, अपने विवाह को। सारा प्राण उस स्‍त्री के पीछा करने लगा। जाकर वह गाड़ी में बैठा। बहुत ईमानदार आदमी रहा होगा। उसने अपनी पत्‍नी से कहां, तूने कुछ ध्‍यान दिया। एक अजीव घटना घट गई। कल तक तुझसे मेरा विवाह नहीं हुआ था, तो मैं विचार करता था कि तू मुझे मिल पायेगी या नहीं। तेरे सिवाय मुझे कोई भी दिखाई नहीं पड़ता था और आज जबकि विवाह हो गया है, मैं तेरा हाथ पकड़कर नीचे उत्‍तर रहा हूं। मुझे एक स्त्री दिखाई पड़ी गाड़ी के उस तरफ जाती हुई और तू मुझे भल गयी। और मेरा मन उस स्‍त्री का पीछा करने लगा। और एक क्षण को मुझे लगा कि काश यह स्‍त्री मुझे मिल जाये।

मन इतना चंचल है। तो जिन लोगों को समाज को व्‍यवस्‍थित रखना था। उन्‍होंने मन के तल पर सेक्‍स को नहीं जाने दिया। उन्‍होंने शरीर के तल पर रोक लिया। विवाह करो,प्रेम नहीं। फिर विवाह से प्रेम आता हो तो आये। न आता हो न आये। शरीर के तल पर स्‍थिरता हो सकती है। मन के तल पर स्‍थिरता बहुत मुशिकल है। लेकिन मन के तल पर सेक्‍स का अनुभव शरीर से ज्‍यादा गहरा होता है।

पूरब की बजाय पश्‍चिम का सेक्‍स का अनुभव ज्‍यादा गहरा है।

पश्‍चिम के जो मनोवैज्ञानिक हैं फ्रायड से जुंग तक, उन सारे लोगों ने जो लिखा है वह सेक्‍स की दूसरी गहराई है, वह मन की गहराई है।

ओशो

संभोग से समाधि की ओर,

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