जनसंख्या विस्फोट – Population explosion OSHO

जनसंख्या विस्फोट

उन्नीस सौ सैंतालीस में जितनी हमारी संख्या थी पूरे हिंदुस्तान-पाकिस्तान की मिल कर, आज अकेले हिंदुस्तान की उससे ज्यादा है। यह संख्या अगर इसी अनुपात में बढ़ी चली जाती है और फिर दुख बढ़ता है, दारिद्रय बढ़ता है, दीनता बढ़ती है, बेकारी बढ़ती है, बीमारी बढ़ती है, तो हम परेशान होते हैं, उससे हम लड़ते हैं। और हम कहते हैं कि बेकारी नहीं चाहिए, और हम कहते हैं कि गरीबी नहीं चाहिए, और हम कहते हैं कि हर आदमी को जीवन की सब सुविधाएं मिलनी चाहिए। और हम यह सोचते ही नहीं कि जो हम कर रहे हैं उससे हर आदमी को जीवन की सारी सुविधाएं कभी भी नहीं मिल सकती हैं। और जो हम कर रहे हैं उससे हमारे बेटे बेकार रहेंगे। और जो हम कर रहे हैं उससे भिखमंगी बढ़ेगी, गरीबी बढ़ेगी। लेकिन धर्मगुरु हैं इस मुल्क में, जो समझाते हैं कि यह ईश्वर के विरोध में है यह बात, संतति-नियमन की बात ईश्वर के विरोध में है। इसका यह मतलब हुआ कि ईश्वर चाहता है कि लोग दीन रहें, दरिद्र रहें, भीख मांगें, गरीब हों, भूखे मरें सड़कों पर। अगर ईश्वर यही चाहता है तो ऐसे ईश्वर की चाह को भी इनकार करना पड़ेगा।

संभोग से समाधि की ओर प्रवचन 9

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