पहला आपरेशन था पूरी पृथ्वी पर, जो बिना बेहोशी की दवा दिए किया गया। OSHO

काशी नरेश के पेट का आपरेशन हुआ १९१५ के करीब। वह पहला आपरेशन था पूरी पृथ्वी पर, जो बिना बेहोशी की दवा दिए किया गया। पहले तो डाक्टर ने इनकार कर दिया। तीन अंग्रेज डाक्टर थे। उन्होंने इनकार कर दिया कि यह संभव नहीं है। क्योंकि किसी आदमी के पेट का आपरेशन हो, और दो घंटे, डेढ़ घंटे तक उसका पेट खुला रहे, बड़ा आपरेशन हो और उसे बेहोश न किया जाए, तो पूरा खतरा है। खतरा यह है कि इतनी पीड़ा हो कि वह आदमी चिल्लाने लगे, उछलने लगे, कूदने लगे, गिर पड़े। कुछ भी हो सकता है। इसलिए डाक्टर राजी नहीं थे।

लेकिन काशी नरेश का कहना यह था कि मैं जितनी देर ध्यान में रहूं, उतनी देर कोई चिंता नहीं है; और मैं डेढ़ घंटे, दो घंटे ध्यान में रह सकूंगा। काशी नरेश राजी नहीं थे बेहोशी की दवा लेने को। वे कहते थे कि होश में ही आपरेशन करना चाहता हूं। और डाक्टर होश में करने को राजी नहीं थे। क्योंकि होश में उतनी पीड़ा से गुजरना खतरनाक हो सकता है।

लेकिन और कोई रास्ता न देखकर फिर उन्होंने पहले तो प्रयोगात्मक रूप से नरेश को ध्यान में जाने को कहा और कुछ हाथ पर छुरी चलाई ताकि वे पता लगा सकें कि हाथ में कंपन होता है या नहीं। लेकिन कंपन भी नहीं हुआ और दो घंटे के बाद ही नरेश कह सके कि मेरे हाथ में दर्द हो रहा है। दो घंटे तक तो कुछ पता नहीं चला। तब फिर आपरेशन किया गया।

वह पहला आपरेशन था पृथ्वी पर, जिसमें पेट पर डेढ़ घंटे तक डाक्टर काम करते रहे पेट खोलकर और किसी तरह की बेहोशी की दवा नहीं दी गई थी। नरेश पूरे होश में थे।

लेकिन इतने होश में होने के लिए गहरे ध्यान की जरूरत है। इतने ध्यान की जरूरत है, जहां कि यह पूरा पता हो कि शरीर अलग है और मैं अलग हूं। इसमें रत्ती भर भी संदेह न हो। इसमें रत्ती भर भी संदेह रहा कि मैं शरीर हूं, ऐसा जरा भी खयाल रहा, तो खतरा हो सकता है।

तो मृत्यु तो बहुत बड़ा आपरेशन है, बहुत बड़ा सर्जिकल आपरेशन है। इतना बड़ा आपरेशन किसी डाक्टर ने कभी नहीं किया है जितना बड़ा मृत्यु है। क्योंकि मृत्यु में प्राणों को एक शरीर से पूरा का पूरा निकालकर दूसरे शरीर में प्रवेश करवाने का उपाय है। इतना बड़ा कोई आपरेशन नहीं हुआ है और न हो सकता है अभी। एकाध अंग हम काटते हैं, एकाध हिस्से को हम बदलते हैं। यहां तो पूरे प्राण की शक्ति को, पूरी ऊर्जा को, एक शरीर से हटाकर दूसरे शरीर में प्रवेश कराना है।

ओशो, मैं मृत्यु सिखाता हूं, प्रवचन ४.

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