आस-पास के लोग अभी भी पागल ही समझते हैं एक-दूसरे को। OSHO

डाइनैमिक मेडिटेशन के दूसरे चरण में रेचन करना एक पागलपन प्रतीत होता है। इस संबंध में एक ध्यानी का प्रश्न: “यदि घर पर इसे हम जारी रखेंगे, चिल्लाएं या नाचें या हंसें तो आस-पास के लोग पागल समझने लगेंगे।”

आस-पास के लोग अभी भी पागल ही समझते हैं एक-दूसरे को। कहते न होंगे, यह दूसरी बात है। यह पूरी जमीन करीब-करीब मैड हाउस है, पागलखाना है। अपने को छोड़ कर बाकी सभी लोगों को लोग पागल समझते ही हैं। लेकिन अगर आपने हिम्मत दिखाई और इस प्रयोग को किया, तो आपके पागल होने की संभावना रोज-रोज कम होती चली जाएगी। जो पागलपन को भीतर इकट्ठा करता है, वह कभी पागल हो सकता है। जो पागलपन को उलीच देता है, वह कभी पागल नहीं हो सकता।

फिर एक-दो दिन, चार दिन उत्सुकता लेंगे, चार दिन बाद उत्सुकता कोई लेने को तैयार नहीं है। कोई आदमी दूसरे में इतना उत्सुक नहीं है कि बहुत ज्यादा देर उत्सुकता ले। और आपके चौबीस घंटे के व्यवहार में जो परिवर्तन पड़ेगा, वह भी दिखाई पड़ेगा; आपका रोना-चीखना ही दिखाई नहीं पड़ेगा। आप जब क्रोध में होते हैं तब कभी आपने सोचा कि लोग पागल नहीं समझेंगे? तब आप नहीं सोचते कभी कि लोग पागल समझेंगे कि नहीं समझेंगे। क्योंकि आप पागल होते ही हैं! लेकिन अगर यह ध्यान का प्रयोग चला तो आपके चौबीस घंटे के जीवन में रूपांतरण हो जाएगा। आपका व्यवहार बदलेगा, ज्यादा शांत होंगे, ज्यादा मौन होंगे, ज्यादा प्रेमपूर्ण, ज्यादा करुणापूर्ण होंगे। वह भी लोगों को दिखाई पड़ेगा।

इसलिए घबड़ाएं न, चार दिन उन्हें पागल समझने दें। चार दिन के बाद, आठ दिन के बाद, पंद्रह दिन के बाद आपसे पूछने वाले हैं वही लोग कि यह आपको जो फर्क हो रहा है, क्या हमें भी हो सकता है?

घबड़ा गए पब्लिक ओपिनियन से-लोग क्या कहते हैं-तब तो बहुत गहरे नहीं जाया जा सकता। हिम्मत करें! और लोग पागल समझते हैं या बुद्धिमान समझते हैं, इससे कितना अंतर पड़ता है? असली सवाल यह है कि आप पागल हैं या नहीं! असली सवाल यह नहीं है कि लोग क्या समझते हैं। अपनी तरफ ध्यान दें कि आपकी क्या हालत है, वह हालत पागल की है या नहीं है! उस हालत को छिपाने से कुछ न होगा। उस हालत को मिटाने की जरूरत है।

फिर यह जो रोना-चीखना, हंसना, नाचना है, यह धीरे-धीरे शांत होता जाएगा। जैसे-जैसे पागलपन बाहर फिंक जाएगा, वैसे-वैसे शांत हो जाएगा। तीन सप्ताह से लेकर तीन महीना-कम से कम तीन सप्ताह, ज्यादा से ज्यादा तीन महीना चल सकता है। जितनी तीव्रता से निकालिएगा उतनी जल्दी चुक जाएगा। प्रत्येक व्यक्ति को थोड़ा अलग-अलग समय लगेगा, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के संगृहीत पागलपन की मात्रा अलग-अलग है। लेकिन जितनी जोर से उलीच देंगे, उतनी जल्दी फिंक जाएगा बाहर और आप शांत हो जाएंगे। जैसे-जैसे शांत होने लगेंगे, आप चाहेंगे भी तो चीख न सकेंगे, नाच न सकेंगे, रो न सकेंगे, हंस न सकेंगे।

मात्र चाहने से कुछ हो नहीं सकता, भीतर चीज चाहिए निकलने को। और जैसे-जैसे गहराई बढ़ेगी, वैसे-वैसे पहला स्टेप रह जाएगा और चौथा स्टेप रह जाएगा। दूसरा पहले गिर जाएगा। फिर धीरे-धीरे पूछने का भी मन नहीं होगा। पूछना भी बाधा मालूम पड़ेगी कि मैं कौन हूं। तीसरा स्टेप भी गिर जाएगा। बाद में पहला स्टेप भी मिनट, दो मिनट का रह जाएगा, श्वास ली नहीं कि आप सीधे चौथे स्टेप में चले जाएंगे। अंततः जितनी गहराई पूरी हो जाएगी, उतना दो मिनट के लिए पहला स्टेप रह जाएगा और सीधा चौथा स्टेप आ जाएगा। पूरे चालीस-पचास मिनट आप चौथी अवस्था में ही रह पाएंगे। लेकिन आप अपनी तरफ से अगर चौथी अवस्था लाने की कोशिश किए तो वह कभी नहीं आएगी। इन दो और तीसरे स्टेप से गुजरना ही पड़ेगा। इनके गिर जाने पर वह अपने से आ जाती है।

ओशो: ध्यान दर्शन प्र 7

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